अनकही बातें
मई 25, 2022
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बुधवार, 25 मई 2022
बुधवार, 18 मई 2022
पिता पर कविता
मई 18, 2022
पिता | पिता हिंदी कविता | सागर गोरखपुरी पिता | पिता की छोटी सी कविता | पिता पर चार पंक्तियाँ | poem on father
पिता
घनी छावँ का साया तुम ही तो थे।
धूप में बादलों की छाया तुम ही तो थे।
तूफ़ान में खड़े चट्टान की तरह।
भगवान मेरे तुम ही तो थे।।
इश्क़ तुम थे इबादत तुम थे।
त्योहारों के रौनक भी तुम थे।
खुले गगन में उड़ने की तुम मोहलत थे।
भगवान मेरे तुम ही तो थे।।
तुम मौज थे, मल्हार थे, ज़िन्दगी का राग थे।
मेरे दोस्त थे, हमराज़ थे, मजधार में पतवार थे।
तुम बरक़त थे, रहमत थे पिता तुम मेरी दुनिंयाँ थे।
भगवान मेरे तुम ही तो थे।।
मेरी लोरी थे, नींदों में कहानी थे लफ्जों की रवानी थे।।
मेरे ख्वाब थे, अरमान थे, मेरी खुशियों का जहान थे।
सब कुछ वही है पर अब तुम साथ नही।
खामोशी है फिर भी कोई आवाज नही।।
तूफ़ान में खड़े चट्टान की तरह।
भगवान मेरे तुम ही तो थे।।
दिनाँक 17 मई 2022 समय: 11.30 सुबह
रचना(लेखक)
सागर गोरखपुरी
मंगलवार, 17 मई 2022
सामाजिक कविता
मई 17, 2022
कश्मीर | कश्मीर पर कविता | poem on kashmir Valley | सागर गोरखपुरी की कविताएं | कश्मीर की खूबसूरती पर कविता | कश्मीर की सुंदरता पर कविता | कश्मीर जन्नत हिंदी कविता
कश्मीर
ऊँची घाटियों में खौप कितना दिखता है।
घनी आवादी में भी बिरान सा लगता है।
यूँ तो कश्मीर किसी जन्नत से कम नही।
लेकिन जाने क्यूँ ये बेबस और लाचार सा दिखता है।।
दुआ, सलाम, फ़िक़्र की तहज़ीब यहां दिखती है।
खुदा से भी खूब सूरत यहाँ नूर बरसती है।
दहशतगर्दों ने इस क़दर खौप फैला रखा है।
कश्मीर किसी कब्रिश्तान से कम नही लगता है।।
यहाँ की जुबान में जैसे केशर घुलती है।
इत्तर, किमाम, गुलमोहर वादी में पिघलती है।
हर चेहरे में सहमा इंसान दिखता है।
कश्मीर बड़ा लाचार सा दिखता है ।।
नमाज़ से सुबह है यहाँ शाम भी ढलती है।
बड़ी मस्कत भरी रात यहाँ कटती है।
ठंड है वादी में, दिलों में आग जलती है।
कश्मीर बडी बेजान सी लगती है।।
रौनक है, नूर है, इबादत और मोहब्बत है।
ईद है, बक़रीद है, रमजान और मोहर्रम है।
सब कुछ तो है घाटी में यहाँ।
फिर भी जाने क्यूँ कश्मीर परेशान सा लगता है।।
दिनाँक 15 मई 2022 समय 10.17 सुबह
रचना(लेखक)
सागर गोरखपुरी
मंगलवार, 10 मई 2022
सोमवार, 9 मई 2022
शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021
सामाजिक कविता
दिसंबर 10, 2021
दलित हिंदी कविता | अछूत पर हिंदी कविता | poem on The Untouchables | पिछड़ी जाति पर कविता | दलितों पर कविता | दलितों पर अत्याचार पर कविता | सागर गोरखपुरी
दलित
शिक्षित है पर क्यूँ तुमने उन्हें सम्मान न दिया।
दलित हैं तो तुमने उन्हें अछूत जैसा नाम दिया।।
सब कुछ किया है तुम्हारी खातिर बत से बत्तर काम किया।
मल मूत्र मवेशियों का, तुम्हारा घर भी उन्होंने साफ किया।
बैलगाड़ी के बैल बने वो, तो कभी चरवाहों का काम किया।
देने को तुमने दिया उन्हें क्या, इस पर तुमने क्या कभी गौर किया।
दलित हैं तो तुमने उन्हें अछूत जैसा नाम दिया।।
पानी छीना माटी छीनी उन्हें अनाजों से मरहूम किया।
इन पर तुम्हारा हक़्क़ नही फिर भी पूरा अधिकार किया।
शिक्षा तो तुम्हारी नही थी पर इससे भी उन्हें मोहताज किया।
उनकी हर चीजों पर बस तुमने अपना अधिकार किया।
दलित हैं तो तुमने उन्हें अछूत जैसा नाम दिया।।
झुके नही न थके कभी वो कदम को अपने रुकने न किया।
सहकर हर ज़ुल्म तुम्हारी एक नया इतिहास लिख दिया।
वर्ण व्यवस्था ऐसी थी कि ईश्वर को भी अपना बता दिया।
छोड़ा क्या उनके हिस्से में इस पर क्या कभी ज़िक्र किया।
दलित हैं तो तुमने उन्हें अछूत जैसा नाम दिया।।
बात करते हो समानता की, क्या बराबरी में कभी उन्हें सम्मान दिया।
कॉप्टिशन में जीते ही नही, हार को अपने आरक्षण का नाम दिया।
नाकाम रहे तुम हर जगह इसका कारण भी उन्हीं को बता दिया।
वो डरे नही बस आगे बढ़े और एक अनोखा संबिधान लिख दिया।
दलित हैं तो तुमने उन्हें अछूत जैसा नाम दिया।।
हर तख्त पर बिराजमान सिर्फ तुम ही तो थे।
फिर भी उन्हें तुमने रेंगने पर मजबूर कर दिया।
देश असल में जिनका है उन्हें रोने पर मजबूर किया।
तुम हार न जाओ इस डर से तुमने उन्हें रौंद दिया।
दलित हैं तो तुमने उन्हें अछूत जैसा नाम दिया।।
दिनांक 07 दिसंबर 2021 समय 14.20
रचना(लेखक)
सागर गोरखपुरी
शनिवार, 2 अक्टूबर 2021
लव कविता
अक्टूबर 02, 2021
निगाहों की जुबां | लव कविता इन हिंदी | प्यार पर कविता | रोमांटिक कविता इन हिंदी | पहला प्यार पर हिंदी कविता | सागर गोरखपुरी की कविताएँ |
निगाहों की जुबां
पकड़ के मेरा हाथ मुझ पर यक़ीन तो कर ले।ताउम्र नही कहता, कुछ दूर तलक ही चल ले।
निगाहों की जुबान नही आती मुझे सच है ये।
मेरे दिल की धड़कनों से तु अपनी हर बात पुछ ले।।
खत में लिखे अल्फाजों के मायने बदल जाते हैं।
मैसेज में कहीं बातों के जज़्बात बदल जाते हैं।
निगाहों की जुबान नही आती मुझे सच है ये।
मेरे दिल के धड़कनों से तु अपनी हर बात पूछ लें।।
जिस मंजिल को ढूंढता था कभी, शायद तुम वही हो।
जिसके दुपट्टे में उंगलिया फंसा कर ज़िंदगी गुज़र जाये शायद तुम वही हो।
जिसके सपने मैंने भोर तलक देखे हैं शायद तुम वही हो।
सोचता हूँ हर बात तुसे आज कह दूं पर कैसे।
निगाहों की जुबान नही आती मुझे सच है ये।
मेरे दिल के धड़कनों से तु अपनी हर बात पूछ लें।।
लङकप्पन की वो सारी नादानियां चाहता हूँ।
छूट गए जो सपने उन्हें तेरे संग जीना चाहता हूँ।
तेरे इर्द गिर्द आवारा हवाओं सा घूमना चाहता हूँ।
तेरी नीदों में हर रोज मैं जागना चाहता हूँ।
निगन्हों की जुबान नही आती मुझे सच है ये।
खामोश रहकर भी हर बात तुझसे कहना चाहता हूँ।।
तुझी से हर सुबह हो मेरी सांझ भी तुझसे हो ।
उथल पुथल हो चाहे ज़िंदगी, पर तेरे संग आराम सा हो।
बैठी रहे तु संग मेरे बांहों में डाले हाथ।
तेरी आँखों के समंदर में डुब कर हो जाये शाम।
कुछ ख्वाब अधूरे है मेरे जो तेरे संग मुझे जीने हैं।
निगन्हों की जुबान नही आती मुझे सच है ये।
मेरे दिल के धड़कनों से तु अपनी हर बात पूछ लें।।
दिनाँक 25 सितंबर 2021 समय 9.30 सुबह
रचना (लेखक)
सागर गोरखपुरी
रविवार, 19 सितंबर 2021
लव कविता
सितंबर 19, 2021
इश्क़ | Love poems | इश्क़ पर हिंदी कविता | प्यार पर कविताएँ | प्यार हिंदी कविता | सच्चे प्यार पर कविता | इश्क़/ सागर गोरखपुरी
इश्क़
अभी तलक तुम मेरे आस-पास रहती है।तु हवाओं की तरह मुझे छुकर गुज़र जाती है।
तेरी वफ़ा की खुशबू मेरे सांसो में इस क़दर बसी है
कमबख्त जिस्म से अब तो जान भी नही निकलती है।।
तु ना होकर भी मेरे क़रीब हर पल रहती है।
कभी बुझे ना जो ऐसी प्यास जैसी तु लगती है।
ज़िंदगी के सफर जो खालीपन छोड़ दिया है तुमने।
उन्हें याद कर कितनी रातें मेरी जागकर गुज़र जाती है।।
उन यादों को लिए किसी समन्दर में मैं डुब जाऊँ।
या फिर किसी किनारे पे बहकर मैं तुझे भूल जाऊँ।
जिस्म से अब तो जान भी नहीं निकलती है।
तू ही बता किस तरह मैं तुझे भूला जाऊँ।।
तेरी हर अदा को शायद अब मैं समझता हूँ।
तेरी निगाहों की जुबान भी मैं जानता हूँ।
कुछ कहता नही तुझसे ये फितरत है मेरी।
तेरी धड़कनों की हर आहट मैं महसूस करता हूँ।।
कभी मिल भी सकेंगे हम लहरों की तरह।
या फिर छुट जाएंगे हाथों से रेत की तरह।
ये फैसला भी अब तो तक़दीर पर है।
तुझसे आस लगाना भी मैंने छोड़ दिया।।
दिनाँक 18 सितंबर 2021 समय 11.00 सुबह
रचना(लेखक)
सागर गोरखपुरी
गुरुवार, 19 अगस्त 2021
देश भक्ति कविताएँ
अगस्त 19, 2021
चाहे जान मेरी ये | हिंदी देश भक्ती कविता/सागर गोरखपुरी | सैनिकों पर कविता | poem on soldiers | 26 जनवरी पर कविता | patriotism Poem |
चाहे जान मेरी ये
तेरे लिए क़ुर्बान हो जाऊं लहू का हर कतरा ये कहता हैंदेखकर दुश्मन शरहद पर खून जिश्म में खौलता है।
शान तिरंगे के खातिर कितनी रातें हमने गवाँई है
ऐसे ही झूमें तू सदा गगन में चाहे जान हमारी ये रहे ना रहे।।
हर बार जिऊँ मैं तेरे लिये सौ बार तुझपे ही मर जाऊं।
जन्मा हूँ मैं जिस माटी में उस माटी में ही मिल जाऊं।
तू ऐसे ही खुश हाल रहे अवाद रहे है दुआ मेरी।
ऐसे ही झूमें तू सदा गगन में चाहे जान हमारी ये रहे ना रहे।।
कभी लिपट भी जाऊं मैं तिरंगे से मेरे घर तक मुझे तुम ले जाना।
निहारती है माँ राहें मेरी एक बार उससे मुझे तुम मिला देना।
अब ना लौट सकूंगा रक्षाबन्धन में मेरी बहनों से ये बता देना।
दुनियाँ है मेरी वो छोटी सी मेरे भाई से जाकर ये कह देना।
उस गली चौबारे उन गलियों में हर जगह मुझे तुम घूमा देना।
मैं खेला हूँ जिस मिट्टी में उस मिट्टी में ही सुला देना।
अवाद रहे वो गांव मेरा चाहे जान मेरी ये रहे ना रहे।।
जो शहिद हुआ तेरे अस्मत पर तुझे छोड़ कहीं ना जाऊंगा।
गर थम गयी जो सांसे मेरी ज़िंदा मैं फिर लौट आऊंगा।
तुझसा कहाँ है इस जहां में कोई, माँ तुझसी कहाँ मिल पायेगी।
आबाद रहे तू सदा दिलों में चाहे जान मेरी ये रहे न रहे।।
तेरी माटी को कोई छू सके इतनी कहाँ किसी में ज़ुर्रत है।
झूका सके जो तुझे ज़मीन पर इतनी कहाँ किसी में हिम्मत है।
अपने लहू से सींचा है इस गुलिस्ताँ को हमने।
तेरी शरहद की निगहवान है आँखें।
आबाद रहे तू सदा दिलों में चाहे जान मेरी ये रहे न रहे।।
दिनाँक 15 अगस्त 2021 समय 6.00 सुबह
रचना (लेखक)
सागर (गोरखपुरी)
शुक्रवार, 13 अगस्त 2021
लव कविता
अगस्त 13, 2021
क्यूँ डूब जातें हैं | LOVE POEM | प्रेम कविताएं | Poem On Why do you dip| प्यार पर हिंदी कविता | यादों पर कविता | लव कविता / सागर गोरखपुरी
क्यूँ डूब जातें हैं
लड़खड़ाते हैं कभी हवाओं में झूम जातें है।पांव रखते है जमीन पर और बहक जाते है।
कतरा कतरा जाम हर शाम हम छलकाते है।
नशे में रहकर भी तेरे खयालों में क्यूँ डूब जाते है।।
तेरे तस्वीर को यूँ ही बेवजह निहारते हैं।
यादों के भवँर में जाने कितने अश्क बाह जाते हैं।
ढलती सांझ में उलझने के सैलाब बन जाते है।
नशे में रहकर भी तेरे खयालों में क्यूँ डूब जाते है।।
तेरा ज़िक्र लबों पे जब भी आये, कहीं खो जाता हूँ।
बेचैनियां इतनी बढ़ती हैं मैं पागल हो जाता हूँ।
हर दिन हर शाम अब तो मैखाने में गुजरती है।
नशे में रहकर भी तेरे खयालों में क्यूँ डूब जाते है।।
तेरा फिक्र तेरा ख्याल मुझमे कहीं ज़िंदा है।
करवटें जब भी लेता हूँ तु आंखों से बहता है।
वक़्त के साथ मैं भी ढल जाना चाहता हूँ।
तेरे आगोस में आके सो जाना चाहता हूँ।
यकीन कर मेरा तुझमें ही ठहर जाना चाहता हूँ।
फुर्सत के उन लम्हों में खो जाना चाहता हूँ।
यही ख्वाहिश लिए कदम मधुशाला की ओर बढ़ जाते हैं।
नशे में रहकर भी तेरे खयालों में क्यूँ डूब जाते है।।
एक तू ही तो हैं जिसके बैगैर सांसे कहाँ चलती हैं।
कोरे कागज पर अब मेरी कलम नही लिखती हैं।
तेरी यादों को मिटाने हर शाम मैखाने पहुंच जाते हैं।
नशे में रहकर भी तेरे खयालों में क्यूँ डूब जाते है।।
दिनाँक 12 अगस्त 2021 समय 10.00 सुबह
रचना (लेखक)
सागर (गोरखपुरी)
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