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शुक्रवार, 15 मई 2020

मैं ढूंढता हूँ | बच्चों पर कविता | हिंदी कविता बचपन | मैं ढूंढता हूँ /सागर गोरखपुरी

                         बचपन की यादें

मैं ढूढ़ता हूँ फिर वही,बचपन की यादें।
वो खेल ,खिलौने,वो मिटटी के घरौंदे।
भूलता नहीं ,अब याद आता है मुझे।
वो गुड़िया की शादी में ,सजना सवरना।
मैं ढूंढता हूँ फिर वही, बचपन की यादें।।
 
                             वो माँ का बुलाना ,मै धीरे से छुप जाना।
                             पापा के आते ही ,झट से निकल जाना।
                             वो देख कर मिठाइयाँ, पापा के हाथों में।
                             दौड़ के उनके, पैरों में लिपट जाना।
                             मै ढूंढता हूँ फिर वही,बचपन की यादें।।
कोई जो बुलाये नहलाने को,तो खुल के हँस देना।
लग जाये जो साबुन आँखों में,तो जोर से रो देना।
कपडे पहनते वक़्त, वो नखरे दिखाना।
माँ का मेरे चेहरे पर,वो काले टीके लगाना।
मै ढूंढता हूँ फिर वही,बचपन की यादें।।
                     समय निकला है बहोत तेज़,अब बस यादें है।
                     माँ की लोरी,पाप की उंगालु।
                     दादा जी का वो,गोद में घूमना।
                     मै ढूढ़ता हूँ फिर वही,बचपन की यादें।
                     वो खेल खिलौने ,वो मिट्टी के घरोंदे।
                     मै ढूढ़ता हूँ फिर वही।।

                  दिनाक- 15 मई 2020      समय 9.00 सुबह

                                           रचन(लेखक)  
                                       सागर (गोरखपुरी)











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