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मंगलवार, 16 जून 2020

चन्द लम्हे | Poem on Few moments | वक़्त पर कविता | हिंदी कविता लम्हे | लम्हा और वक़्त पर कविता | दोस्तों पर कविता | सागर गोरखपुरी

                               चन्द लम्हे
चन्द लम्हे जो फुर्सत के मिल जाये।
मिल जायें कही पर,दिन और रात।
करते रहे गुफ्तगू, बैठकर भोर तलक।
दिन हो चाहे,हो जाये रात।
चन्द लम्हे जो फुर्सत के मिल जाये।।

कुछ वक़्त गुज़ारें साथ बैठ के।
करें फिर वही पुरानी बात।
कुछ यादें है जो भूल चलें है।
फिर याद करें वही बात।
चन्द लम्हे जो फुर्सत के मिल जायें।।

वक़्त नहीं है किसी के पास।
जो याद कर सके पुरानी बात।
व्यस्त है सभी अपनी दुनियाँ में।
कि वक़्त नहीं है किसी के पास।
चन्द लम्हे जो फुर्सत के मिल जायें।।
चन्द लम्हे जो मिलें फुर्सत के।
तो करें फिर वही पुुराने काम।
नुक्कड़ पे बैठ कर यारों के साथ।
खायें समोसे,जलेबियाँ तमाम।
और बातें करके जोर से हंसे।
ऑडर करना दो,चार कप चाय।
चन्द लम्हे जो फुर्सत के मिल जाये तो।
करें फिर वही पुराने काम।।

   दिनाँक 16 जून 2020        समय 1.30 दोपहर

                                                      रचना(लेखन)
                                                   सागर गोरखपुरी

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