सूरज
सुबह सुबह जब देखा मैंने।
सूरज को धीरे से उगते हुए।
चिड़ियाँ चहक रही थी गगन में।
झूम रहे थे पेड़ और पौधे।।
आसमान था बिल्कुल नीला।
सूरज किरणें बिखेरे हुए।
चमक थी चारो ओर गगन में। गर्मी धीरे धीरे बढ़ती हुई।।
दोपहर हुई तो क्या गर्मी थी।
सूरज था होके लाल खड़ा।
छूट रहे थे पसीने सबके।
ओ हँस रहा था देख खड़ा।।
शाम हुई तो कम हुआ गुस्सा ।
सूरज नीचे उतर गया।
देख के इसका रूप सुनेहरा।
ख़ुशी से मन झूम गया।।
जाते जाते बोल गया।
अब सो लो फिर कल आऊंगा।
इससे जादा गर्मी लिए।
तुम्हारे पसीने छुडाऊंगा।
कह गया सूरज,जाते जाते।।
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