आतंकबाद
उठाके के बंदूकें हाथों में।
लूट रहे है अपना ही वतन।
बो रहे है खेतों में नफ़रत।
सींच रहे है लहू से इसे हम।।
बदहाली है चारों तरफ।
सन्नाटे का आलम है।
हर घर में मर रहा है कोई।
आतंकबाद ही क्यों ज़िंदा है।।
दैहश्त ही दैहश्त है अब तो।
आतंकबाद है चारो ओर।
इंसान बन गया है हैवान।
क्यों इतने हम हो गए लाचालर।।
बंदूकों से कुछ नहीं होता।
खत्म करो ये आतंकबाद।
समझेंगे जब इंसान को इंसान।
तभी खत्म होगा ये आतंकबाद।।
कई घर उजड़ गये।
कुछ हो गए घर से बेघर।
बढ़ रही है नफ़रत दिलों में।
उग रही है आतंकबाद की फसल।।
दिनाँक-07 जून 2020 समय- 6.00 सुबह
रचना(लेखक) अमित कुमार सागर
English translate
Terrorabad
Guns in hand.
They are robbing their own country
Sowing hates in the fields.
We are watering it with blood.
The plight is everywhere.
There is silence of silence.
Somebody is dying in every house.
Why is Terrorabad alive?
Sorrow is a sorcerity now.
Terrorabad is everywhere.
Human being has become cruel.
Why have we become so helpless.
Nothing happens with guns.
Finish this terror
Will understand when human being human.
Only then will this terror end.
Many houses were destroyed.
Some became homeless.
Hate is increasing in hearts
The crop of Terrorabad is growing.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें